Wednesday, April 4, 2012

मौन

घर के बाहर मौन बैठा था कि तभी एक सज्जन का आना हुआ है। आते ही उन्होंने बोलना शुरु किया है। मैं उन्हें सुनता हूँ, वे जो कहते हैं उनमें अधिकांश बातें निरर्थक और बेकार हैं। खुद से ज्यादा वे दूसरों की बातें कर रहे हैं।
      घंटे भर बोलने के बाद उन्होंने मुझसे कहा है कि मैं बहुत कम बोलता हूं और यह बहुत हानिकारक है। मैं उनकी बात सुनकर मुस्कुराता हूँ और उनसे कहता हूँ- मैं ज्यादा नहीं बोलता क्योंकि निरर्थक बातें करने में मेरी रुचि नहीं, मैं सिर्फ सार्थक बातें पसंद करता हूँ। और फिर उनसे पूछता हूँ कि उनको जीवन में ज्यादा बोलनें से क्या लाभ हुआ है..? काफी देर तक उनके उत्तर की प्रतीक्षा करता हूँ लेकिन वे मौन हैं। थोड़ी देर बाद उनको मैं बताता हूं कि कम बोलनें से मुझे जीवन में क्या क्या लाभ हुआ है।