Tuesday, October 30, 2012

नानी का गांव

   रांची से 55-60 km दूर एक छोटा सा गांव है जिसका नाम है- सुन्दारी.. ये मेरे नानी का गांव है.. अक्सर छुट्टीओं में मैं यहां पहुंच जाता हूं.. यहां का शांत व प्राकृतिक वातावरण मुझे बेहद पसंद आता है..
   सदा की भांति इस वर्ष भी दुर्गापूजा की छुट्टीओं में मुझे वहां जाने का मौका मिला.. जब भी मैं वहां जाता हूं, अपनें साथ अपना कैमरा ले जाना कभी-भी नहीं भूलता.. वहां की दुनियां मुझे बड़ी 'फोटोजेनिक' लगती है.. वहां अक्सर मैं और मेरे मामाजी शाम को घूमनें निकल जाते हैं और मुझे रास्ते में जो कुछ भी मिलता है मैं अपनें कैमरे में वो सब कैद करता जाता हूं..
   इस बार भी हम शाम होते ही घूमनें निकल गये, गांव की मुख्य सड़क से इतर हम हमेशा ही खेतों की ओर घूमनें निकल जाते हैं.. ये रास्ते कच्चे और बालू भरे होते हैं.. इन्हीं रास्तो पे हम घंटों घूमते हुए अपना बचपन और यहां गुजारे पुरानें दिनों को याद किया करते हैं..


इन्हीं रास्तों में इस बार मामाजी नें एक जगह रेत पर गांधीजी बनाकर दिखाया..



दूसरे दिन हमारा 'सोनपूरगढ़' जाना हुआ.. मेरे नानी के गांव से ये 5km की दूरी पे है.. यहां का मंदिर बहुत ही प्रसिद्ध है, इस मंदिर में कई देवी-देवताओं की प्राचीन मूर्तियां हैं जो कि खुदाई से निकली हैं, और यहां का ये पेड़ भी खास है क्यूंकि इस पेड़ पर ये आकृति जो कि बिलकुल गणेशजी की प्रतिमा की तरह लगता है, प्राकृतिक रुप से बना है..


जब हम मंदिर से निकले, बाहर थोड़ी दूरी पर कुछ बच्चे खेल रहे थे.. मेरे हाथ में कैमरा देखते ही वे तरह तरह के करतब दिखानें लगे, मैं भी उनकी हरकतें अपनें कैमरे में कैद करनें लगा..


 




सोनपूरगढ़ में नई-नई बिजली आई है तो ये छोटा सा ट्रांसफरमर यहां लगाया गया है जोकि इतना छोटा है कि मुझे तो ये एक अजूबा ही लगा..

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Friday, October 5, 2012

ध्यान

   'ध्यान एक यात्रा है; एक यात्रा जो ध्वनि से मौन की ओर जाती है, जो गति से स्थायित्व की ओर जाती है, जो एक सीमित पहचान से असीमित आकाश की ओर जाती है..'
जो अंधकार से प्रकाश की ओर, और मृत्यु से अमृत की ओेर जाती है...
  
   तमसो मा ज्योतिर्गमय..मृत्योर्मामृतं गमय...