Sunday, February 26, 2012

घृणा और प्रेम

भय से प्रेम का उत्पन्न होना असंभव है। भय से तो घृणा उत्पन्न होती है, लेकिन भय के कारण घृणा को हम प्रकट नहीं करते वरन प्रेम का अभिनय करते हैं।
लेकिन हम प्रेम को भय से उत्पन्न करनें की चेष्टा करते हैं। यह सब कितना मुर्खतापूर्ण है...

Thursday, February 23, 2012

इकठ्ठा ज्ञाण

जीवन में गहरी गहरी बातें जान लेना और लोगों के साथ इन बातों की चर्चा करना काफी नहीं है, जबतक कि ये बातें हमारे अनुभव मे नहीं आयी। इस तरह की बातों से ज्ञाण का एक भ्रम पैदा हो जाता है, और कुछ भी तो नहीं मिलता सिवाय अहंकार के।
मैं अपनें चारों ओर रोज ऐसे लोगों को देखता हूं जिन्होनें काफी ज्ञाण इकठ्ठा कर रखा है, परन्तु उनके जीवन की बुनियादी समस्याएं ज्यों की त्यों बनी हुई हैं। उस इकठ्ठे ज्ञाण से उन्हे कोई लाभ नहीं हो रहा, वरन उससे उनका अहंकार और भी प्रगाढ़ होता जा रहा है।
और अहंकार ज्ञाण का अभाव ही तो है....

Wednesday, February 22, 2012

मन

मेरा मन, मेरा साथी है जो मेरे ही भीतर रहता है। इसलिए मैं जहां भी रहता हूं, उससे जुड़ा रहता हूं। उसे ही देखता हूं। वह मेरी आंखो में है, मेरी आंखो की रोशनी बनकर। फिर वह दूर कहां, वह तो हर जगह है..

Tuesday, February 21, 2012

शांति

आंखे बंद किए बैठा था और भीतर देखता था। भीतर कितना आनंद है। भीतर जब विचारों की आंधी थम जाती है तो एक अद्भुत शांति उतर आती है। असल में केंन्द्र पर तो सदा शांति होती है पर हम परिधि पर ही होते हैं, केंद्र की ओर कभी देखते ही नहीं, और सारे खजानें केंद्र में ही छुपे होते हैं
उस जगत से वापस लौटा हूं। चारों ओर कितनी शांति है, बाहर भी और भीतर भी। बाहर आस्तित्व उत्सव में लीन है और भीतर चेतना...

Sunday, February 19, 2012

Cellphone Clicks..









These are some pictures I've taken in the past using my 2 megapixel cellphone camera.. In fact that was my first taste of digital shooting, earlier I used to shoot on films.. Though I clicked so much on films using many of Kodaks and Yashikas but my passion for photography aroused only when I've got my first camera phone which is a 2 megapixel Nokia (Nokia N70-M), after that I experimented a lot and learned a lot, though it's very limited as one can not go through all the settings which a manual camera supports but it was more than enough for me at that time, so I enjoyed a lot in the 'Click and Go' fashion.. :-))

Saturday, February 18, 2012

प्रसन्नता का कारण

शाम किसी मित्र से मिलना हुआ है। थोड़ी बातचीत के बाद उन्होंने मुझसे मेरी प्रसन्नता का कारण पूछा है...
प्रसन्नता का क्या कारण हो सकता है..? प्रसन्नता तो हमारा स्वभाव है। अभी और यहां हमेशा प्रसन्नता है, लेकिन हम कभी वर्तमान में नहीं होते, हम हमेशा भूत और भविष्य के बीच डोलते रहते हैं, और वर्तमान को खोते रहते हैं।
यही उस मित्र से भी कहा है...

Wednesday, February 15, 2012

उत्सव

दोपहर से बारिश हो रही है, आसमान बादलों से ढका है और शाम बहुत सुहावनी लग रही है।
मैं वर्तमान में हूँ और आस्तित्व के इस उत्सव में अनायास ही शामिल हो गया हूँ। वर्तमान में होना कितना आनंददायी है। मैं अपनें कमरे में बिलकुल अकेला हूं, पर वर्तमान मे होने से हम कभी भी अकेले नहीं होते। हमारा मौन, हमारा ध्यान और पूरा आस्तित्व हमारे साथ होता है।
असल में ये सब हम ही होते हैं, हम आस्तित्व के साथ एक हो जाते हैं। ऐसे क्षण में हम एकांत में भी होते हैं और अकेले भी नहीं होते।