Sunday, December 28, 2014

फूलों से सुन्दर..


      मैं एक बात अक्सर कहता रहता हूँ कि इस दुनियां मे शायद फूलों से सुन्दर कुछ भी नहीं..  और शायद इसलिए ही हमें सुन्दरतम् की उपमा हमेशा फूलों से ही देनीं पड़ती है.. फूलों के रूप में यह एक जादू है जो प्रकृति ने हमें यूं ही दे दिया है.. 'यूँ ही' इसलिए क्यूंकि और ढ़ेर सारी बहुमुल्य चीजों की तरह इनकी कोई विशेष उपयोगिता नहीं है, ये यूं ही खिल जाते है..

      इस बार आपके लिए कुछ सुन्दरतम् फूल रांची के 'जैव विविधता उद्यान' से..




      इस उद्यान में गुलाबों का एक अलग बागीचा है, जिसमें कई तरह के गुलाब देखे जा सकते है:




      और तरह तरह के फूल पूरे परिसर में फैले है, जो यहां घुसते ही आपका ध्यान आकर्षित करते है..






      यहां के जलीय उद्यान में खिला यह नील कमल:









      जिस तेज गति से समय भागा जा रहा है, इससे बिलकुल पता ही नहीं रहता कि कब एक पूरा वर्ष बीत गया, और कब नया साल दस्तक देने लगा.. बहरहाल, नए वर्ष के आगमन पर मैं सभी मित्रों से बस यही कहना चाहता हूँ कि जीवन सौन्दर्य से भरपूर है, इसे देखें, महसूस करें, इसे पूरी तरह से जीएँ.. नया साल एक खाली किताब सा है, और पेन आपके हाथ मे है; आप इसमें अपने लिए एक खूबसूरत सी कहानी लिख सकते हैं.. और मेरी शुभकामनाएं तो हमेशा आपके साथ हैं ही..

      इन फूलों सा ही सुन्दर आपका नव वर्ष भी हो.. :)


Monday, December 15, 2014

Nifty-Fifty


      This is the Canon's Little wonder: Nifty Fifty.. I've added this to my equipments list recently.. In spite of its price and build quality, Its optical quality is very impressive.. A definitive step up from the kit lens.. Great for portraiture and low light shooting..




      It's a prime lens so we don't get any zoom, but they tends to give better sharpness and color.. One more major advantage using a prime is their bigger aperture.. Bigger aperture is great for low light indoor shots where they allow you to have 2-3 stop faster shutter speeds and also for portraiture where they can produce very nice blurred backgrounds..

      Second one is the first test pic from this lens.. The Buddha from my computer desk.. You can surely see the amount of detail this lens can give and also the blurred background..




      In the future, I hope to get some really beautiful pictures from this lens..

      I write mostly in Hindi in this blog, but this time I've chosen English.. Because when you've to talk about technology, you don't have all the words in Hindi.. If you choose to write by the way, it becomes Hinglish now and then.. and that's not seems to feel beautiful.. That's why..  :)





Friday, December 5, 2014

इंडस्ट्रियल विजिट

      छोटे-छोटे पलों से जैसे जिन्दगी बनती है, या जैसे छोटे-छोटे टुकड़ों से हमारा शरीर बना है.. ऐसे ही छोटे-छोटे टुकड़ों को जोड़कर एक पूरा मशीन बनाया जाता है, और उसमे अगर कोई टुकड़ा बाकि टुकड़ों से किसी भी रूप में संतुलन नहीं बिठा पाता तो फिर वह मशीन ठीक से काम नहीं कर पाती..

      वैसे तो यह एक साधारण सा काम लगता है, और इसे करने वाले कारीगरों को तो इसका बिलकुल भी आभास नहीं होता होगा कि उन मशीनों के लिए वे वही करते हैं जो हम मनुष्यों के लिए प्रकृति करती है.. वे उन टुकड़ो को बनाते हैं, फिर उनको आपस में इस संतुलन के साथ बिठाते हैं कि पुरी मशीन एक युनिटी से काम करने लगती है.. या इसे ऐसे कहें कि वे जीवित हो उठती हैं..





      वैसे तो हम सब यह पहले से ही जानते थे, पर इसे साक्षात देखने और समझने का अवसर हमें तब मिला जब हमारे 'वोकेशनल सेंटर' से हमारा एक ग्रुप 'इंडस्ट्रियल विजिट' के लिए तुपुदाना गया.. यहां CPC युनिट में कुछ भारी मशीनें बनाई जाती है.. यहां एक चीज जो हमें सबसे पहले प्रभावित करती है वो यह है कि इतना ज्यादा काम होने के बावजूद कोई भी कर्मचारी तनाव में नहीं है.. सभी अपने काम से आनंदित हैं और शायद यही इनकी सफलता का भी राज है जो इन्हें पूर्वी भारत का सबसे बडा उत्पादक बनाती है.. हम विद्यार्थियों के समूह का भी इन्होंने बड़ी ही शांती और धर्य से सामना किया..

      वे भी थोड़े अचंभित हुए जब अचानक ही उनके कार्यक्षेत्र में हमने धावा बोला, और सभी विद्यार्थी पूरे फैक्ट्री परिसर मे फैल गए.. वैसे तो हम पच्चीस ही थे, पर सभी इधर-उधर छोटे-छोटे समूह मे बंट गए थे.. करीब-करीब सभी के पास मोबाईल कैमरा और नोटपैड थे, कुछ तो हर उस छोटी-छोटी जानकारीयों को भी नोट कर रहे थे जिसे शायद दुबारा देखने पर वे खुद भी समझ न पाएं.. और मोबाईल कैमरे तो बस लग रहा था जैसे आज ही के लिए खरीदे गए हों.. पर वहां के कर्मचारी शायद इन सब के लिए अभ्यस्त थे, वे सभी अपने काम मे लगे थे, वे हर विद्यार्थी को हर मशीन का नाम बताते, उस मशीन से वे क्या कर रहे हैं; ये बताते.. और बच्चे सारी जानकारीयां अपने नोटपैड मे बटोर लेते.. कुछ बच्चे जो ज्यादा समझदार थे, उन्हें लग रहा था कि सारी चीजें तो वे 'नेट' से ही ले लेंगे; पर उन्होनें शायद ये बात अबतक नहीं समझीं थी कि 'गुगल से प्राप्त ज्ञाण और स्विस बैंक मे रखा धन, कभी भी विपरीत परिस्थितियों में काम नहीं आते..' :)

      उन्हीं विद्यार्थीयों मे से तीन विद्यार्थीयों के समुह में एक मैं भी था, हमनें भी कई जानकारियां अपने नोटपैड में बटोरीं और फोटोग्राफ्स भी कई क्लिक किए गए.. पर नोटपैड मे लिखी जानकारियां सिर्फ 'रिपोर्ट्स' बनाने में ही काम आ सकती हैं उनका असल जिन्दगी में कोई उपयोग नहीं होता, और जो चीजें असल जिन्दगी में काम आ सकतीं हैं वे शायद नोटपैड पर नहीं लिखी जा सकतीं.. उन्हें तो देखकर, समझकर, और वर्तमान मे रहते हुए आसपास की सभी चीजों का मूल्यांकन करते हुए ही सीखीं जा सकती है..

      इस तरह की इंडस्ट्रियल यात्रा से विद्यार्थीयों को बहुत कुछ सीखनें का अवसर मिलता है.. इस तरह की फैक्ट्रीयों मे इतनी बड़ी मात्रा में 'मैनपावर' की जरूरत नहीं है, ये काम अब सोफ्टवेयर्स और ओटोमेटेड मशीनें ज्यादा कुशलता से कर सकती हैं.. मनुष्य मशीन की तरह काम करते करते एक मशीन ही बन जाता है और यह मनुष्यों का अवमूल्यन है.. हमें मनुष्यों के लिए ऐसे कार्य की आवस्यकता है जो उनकी गरिमा को बढ़ाता हो.. मनुष्यों के पास इंटेलिजेंस है, सोचनें की क्षमता है जिसका ऐसे कार्यो में बिलकुल भी इस्तेमाल नहीं हो पाता.. हमें जरूरत है ज्यादा से ज्यादा 'रिसर्च वर्क' की जो हमें और-और आगे ले जाएगा..

      खैर, मैने तो ये सोचा था कि मेरा कैमरा ख्वामखां ही वहां एक बोझ बनेगा पर वहां जाकर ऐसा लगा कि कुछ शानदार तस्वीरें ली जा सकतीं थीं.. खैर कैमरा तो मैनें लिया नहीं था तो तस्वीरें मोबाईल कैमरे से ही ली गयीं.. कुछ तस्वीरें अच्छी आईं भी, जो फिर कभी साझा करूंगा...



Thursday, November 13, 2014

गीतांजलि

      कुछ चित्र हमें अपनें आप से जोड़ते हैं.. एक भाव जो उस चित्र से जुड़ा होता है, हर बार उस चित्र के सामने आते ही वह भाव भी प्रबल होकर ह्रदय में मचलने लगता है..





       इस फूल को जब मैने देखा था, ये जिस तरह छुपा हुआ मुझे निहार रहा था.. मुझे लगा जैसे मुझे ये कुछ याद दिला रहा है.. ऐसे भी छुप-छुप कर देखने मे एक खूबसूरती होती है.. फिर इसे देखते देखते पता नहीं कब मेरा ह्रदय अनायास गीतांजलि के इस गीत में डूब गया...

"Aamar hiyar majhe lukiye chile dekhte aami paai ni..
Tomay dekhte aami paai ni..
Bahir pane chokh melechi,aamar hridoy pane chaai ni.."


      जो बेंगोली नहीं समझते, वे नीचे इसका अंग्रेजी अनुवाद देख सकते हैं..

"Thee were hidden in my heart, so I could't find thou art, I didn't see thou art..
My eyes wandered all outsides, I didn't peeked my inside.."

      कितनी अच्छी तरह व्यक्त किया है इसे रवीन्द्रनाथ नें, शायद सबसे अच्छी तरह.. गीतांजलि मेरे सबसे प्रिय काव्यों में से एक है, जब भी फुर्सत हो आप इसमें डूब सकते हैं.. पूरी तरह.. और फिर जब आप गोता लगा कर वापस लौटते है, आपके हाथ में कुछ मोती होते हैं.. और ये मोती आपको फिर फिर वापस गोता लगाने के लिए आमंत्रित करते हैं...



Thursday, October 9, 2014

कोपलें फिर फूट आईं..



       (Exif: 1/40; f-5.6; 55mm; ISO 640)


       (Exif: 1/50; f-5.0; 39mm; ISO 640)


       (Exif: 1/50; f-5.0; 39mm; ISO 640)


       (Exif: 1/80; f-5.6; 40mm; ISO 640)


       (Exif:1/60; f-5.0; 40mm; ISO 640)


       (Exif: 1/25; f-5.6; 55mm; ISO 640)


       (Exif: 1/80; f-5.6; 37mm; ISO 640)


       (Exif: 1/400; f-13; 43mm; ISO 200)


       (Exif: 1/30; f-5.6; 55mm; ISO 640) 







Friday, September 5, 2014

The Old Phone (Just an imagination)



    When I was quite young, my father had one of the first telephones in our neighborhood. I remember the polished, old case fastened to the wall. The shiny receiver hung on the side of the box. I was too little to reach the telephone, but used to listen with fascination when my mother talked to it.

     Then I discovered that somewhere inside the wonderful device lived an amazing person. Her name was "Information Please" and there was nothing she did not know. Information Please could supply anyone's number and the correct time.

     My personal experience with the genie-in-a-bottle came one day while my mother was visiting a neighbor. Amusing myself at the tool bench in the basement, I whacked my finger with a hammer, the pain was terrible, but there seemed no point in crying because there was no one home to give sympathy. :

     I walked around the house sucking my throbbing finger, finally arriving at the stairway. The telephone! Quickly, I ran for the footstool in the parlor and dragged it to the landing Climbing up, I unhooked the receiver in the parlor and held it to my ear. "Information, please" I said into the mouthpiece just above my head.

     A click or two and a small clear voice spoke into my ear.

"Information."

     "I hurt my finger..." I wailed into the phone, the tears came readily enough now that I had an audience.

     "Isn't your mother home?" came the question.

     "Nobody's home but me," I blubbered.   

     "Are you bleeding?" the voice asked.

     "No," I replied. "I hit my finger with the hammer and it hurts."

     "Can you open the icebox?" she asked.

     I said I could.

     "Then chip off a little bit of ice and hold it to your finger," said the voice.

     After that, I called "Information Please" for everything. I asked her for help with my geography, and she told me where Philadelphia was. She helped me with my math. She told me my pet chipmunk that I had caught in the park just the day before, would eat fruit and nuts.

     Then, there was the time Petey, our pet canary, died. I called, Information Please," and told her the sad story. She listened, and then said things grown-ups say to soothe a child. But I was not consoled. I asked her, "Why is it that birds should sing so beautifully and bring joy to all families, only to end up as a heap of feathers on the bottom of a cage?"

     She must have sensed my deep concern, for she said quietly, " Wayne, always remember that there are other worlds to sing in."

     Somehow I felt better.

     Another day I was on the telephone, "Information Please."

     "Information," said in the now familiar voice. "How do I spell fix?" I asked.

     All this took place in a small town in India. When I was nine years old, we moved across the country to Delhi. I missed my friend very much. "Information Please" belonged in that old wooden box back home and I somehow never thought of trying the shiny new phone that sat on the table in the hall. As I grew into my teens, the memories of those childhood conversations never really left me.

     Often, in moments of doubt and perplexity I would recall the serene sense of security I had then. I appreciated now how patient, understanding, and kind she was to have spent her time on a little boy.

     A few years later, on my way to college, my bus broke down. I had to wait a half-hour or so. I spent 15 minutes or so on the phone with my sister, who lived there now. Then, without thinking what I was doing, I dialed my hometown Operator and said, "Information Please."

     Miraculously, I heard the small, clear voice I knew so well. "Information."

     I hadn't planned this, but I heard myself saying, "Could you please tell me how to spell fix?"

     There was a long pause. Then came the soft spoken answer, "I guess your finger must have healed by now."

     I laughed, "So it's really you," I said. "I wonder if you have any idea how much you meant to me during that time?"

     I wonder," she said, "if you know how much your call meant to me. I never had any children and I used to look forward to your calls."

     I told her how often I had thought of her over the years and I asked if I could call her again when I came back to visit my sister.

     "Please do", she said. "Just ask for Sally."

     Three months later I was back in Seattle . A different voice answered "Information." I asked for Sally.

     "Are you a friend?" she said.

     "Yes, a very old friend," I answered.

     "I'm sorry to have to tell you this," she said. "Sally had been working part-time the last few years because she was sick. She died five weeks ago."

     Before I could hang up she said, "Wait a minute, did you say your name was Wayne ?"

     "Yes." I answered.

     "Well, Sally left a message for you. She wrote it down in case you called. Let me read it to you."

     The note said, "Tell him there are other worlds to sing in. He'll know what I mean."

     I thanked her and hung up. I knew what Sally meant.

     Never underestimate the impression you may make on others.

Monday, August 11, 2014

Children's Portraiture


     Children are always beautiful.. because they are always in the present. They never bother about past and future, rather they enjoy this moment fully.. They are more natural, more central and more energetic..

     Its really a pleasure to shoot them. This time I am sharing some portraits of children which were taken recently:






























Thursday, March 20, 2014

Experimental Shots

हाल ही में मैंने एक नया DSLR लिया है. शुरुआत से ही कई फोटोग्राफर बंधुओं से इसके लिए सुझाव मिलते रहें हैं.. एक Compact कैमरे में भी कई खूबियां होती हैं, मसलन इसका छोटा आकार, कम वजन, इत्यादि.. पर इसकी कई सीमाएं भी होती हैं. फोटो क्वालिटी के मामले में अक्सर ही ये मात खा जाता है, खास कर अगर रोशनी थोड़ी कम हो.. SLR की आप्टिकल क्वालिटी भी बेहतरीन होती है, इसके अलावे जरूरत के हिसाब से हमें लेंस बदलने की सुविधा भी मिलती है.. इन्हीं सारी खूबियों के मद्देनजर आखिर मुझे भी अंतत: इसका चुनाव करना ही पड़ा..

इस बार होली में जब छुट्टी मिली, तो मुझे मौका मिला अपने नए कैमरे को परखने का.. उन्ही प्रयोगात्मक छायाचित्रों में से कुछ आपके लिए: