आंखे बंद किए बैठा था और भीतर देखता था। भीतर कितना आनंद है। भीतर जब विचारों की आंधी थम जाती है तो एक अद्भुत शांति उतर आती है। असल में केंन्द्र पर तो सदा शांति होती है पर हम परिधि पर ही होते हैं, केंद्र की ओर कभी देखते ही नहीं, और सारे खजानें केंद्र में ही छुपे होते हैं
उस जगत से वापस लौटा हूं। चारों ओर कितनी शांति है, बाहर भी और भीतर भी। बाहर आस्तित्व उत्सव में लीन है और भीतर चेतना...
उस जगत से वापस लौटा हूं। चारों ओर कितनी शांति है, बाहर भी और भीतर भी। बाहर आस्तित्व उत्सव में लीन है और भीतर चेतना...
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