भय से प्रेम का उत्पन्न होना असंभव है। भय से तो घृणा उत्पन्न होती है, लेकिन भय के कारण घृणा को हम प्रकट नहीं करते वरन प्रेम का अभिनय करते हैं।
लेकिन हम प्रेम को भय से उत्पन्न करनें की चेष्टा करते हैं। यह सब कितना मुर्खतापूर्ण है...
लेकिन हम प्रेम को भय से उत्पन्न करनें की चेष्टा करते हैं। यह सब कितना मुर्खतापूर्ण है...
बहुत खूब लिखा है
ReplyDeleteनई पोस्ट पर आपका स्वागत है !
सबसे पहले दक्ष को जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनायें.!!
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धन्यवाद....
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