रांची से 55-60 km दूर एक छोटा सा गांव है जिसका नाम है- सुन्दारी.. ये मेरे नानी का गांव है.. अक्सर छुट्टीओं में मैं यहां पहुंच जाता हूं.. यहां का शांत व प्राकृतिक वातावरण मुझे बेहद पसंद आता है..
सदा की भांति इस वर्ष भी दुर्गापूजा की छुट्टीओं में मुझे वहां जाने का मौका मिला.. जब भी मैं वहां जाता हूं, अपनें साथ अपना कैमरा ले जाना कभी-भी नहीं भूलता.. वहां की दुनियां मुझे बड़ी 'फोटोजेनिक' लगती है.. वहां अक्सर मैं और मेरे मामाजी शाम को घूमनें निकल जाते हैं और मुझे रास्ते में जो कुछ भी मिलता है मैं अपनें कैमरे में वो सब कैद करता जाता हूं..
इस बार भी हम शाम होते ही घूमनें निकल गये, गांव की मुख्य सड़क से इतर हम हमेशा ही खेतों की ओर घूमनें निकल जाते हैं.. ये रास्ते कच्चे और बालू भरे होते हैं.. इन्हीं रास्तो पे हम घंटों घूमते हुए अपना बचपन और यहां गुजारे पुरानें दिनों को याद किया करते हैं..
इन्हीं रास्तों में इस बार मामाजी नें एक जगह रेत पर गांधीजी बनाकर दिखाया..
दूसरे दिन हमारा 'सोनपूरगढ़' जाना हुआ.. मेरे नानी के गांव से ये 5km की दूरी पे है.. यहां का मंदिर बहुत ही प्रसिद्ध है, इस मंदिर में कई देवी-देवताओं की प्राचीन मूर्तियां हैं जो कि खुदाई से निकली हैं, और यहां का ये पेड़ भी खास है क्यूंकि इस पेड़ पर ये आकृति जो कि बिलकुल गणेशजी की प्रतिमा की तरह लगता है, प्राकृतिक रुप से बना है..
सोनपूरगढ़ में नई-नई बिजली आई है तो ये छोटा सा ट्रांसफरमर यहां लगाया गया है जोकि इतना छोटा है कि मुझे तो ये एक अजूबा ही लगा..
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सदा की भांति इस वर्ष भी दुर्गापूजा की छुट्टीओं में मुझे वहां जाने का मौका मिला.. जब भी मैं वहां जाता हूं, अपनें साथ अपना कैमरा ले जाना कभी-भी नहीं भूलता.. वहां की दुनियां मुझे बड़ी 'फोटोजेनिक' लगती है.. वहां अक्सर मैं और मेरे मामाजी शाम को घूमनें निकल जाते हैं और मुझे रास्ते में जो कुछ भी मिलता है मैं अपनें कैमरे में वो सब कैद करता जाता हूं..
इस बार भी हम शाम होते ही घूमनें निकल गये, गांव की मुख्य सड़क से इतर हम हमेशा ही खेतों की ओर घूमनें निकल जाते हैं.. ये रास्ते कच्चे और बालू भरे होते हैं.. इन्हीं रास्तो पे हम घंटों घूमते हुए अपना बचपन और यहां गुजारे पुरानें दिनों को याद किया करते हैं..
दूसरे दिन हमारा 'सोनपूरगढ़' जाना हुआ.. मेरे नानी के गांव से ये 5km की दूरी पे है.. यहां का मंदिर बहुत ही प्रसिद्ध है, इस मंदिर में कई देवी-देवताओं की प्राचीन मूर्तियां हैं जो कि खुदाई से निकली हैं, और यहां का ये पेड़ भी खास है क्यूंकि इस पेड़ पर ये आकृति जो कि बिलकुल गणेशजी की प्रतिमा की तरह लगता है, प्राकृतिक रुप से बना है..
जब हम मंदिर से निकले, बाहर थोड़ी दूरी पर कुछ बच्चे खेल रहे थे.. मेरे हाथ
में कैमरा देखते ही वे तरह तरह के करतब दिखानें लगे, मैं भी उनकी हरकतें
अपनें कैमरे में कैद करनें लगा..
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खुबसूरत चित्र संयोजन....कहानी को पूर्ण करते, अतीत के गलियारों में ले जाते हैं....साधुवाद
ReplyDeleteवाह...नानी के गाँव की सैर करा दी.. बहुत बहुत शुक्रिया...!!
ReplyDeleteआपको भी..
Deleteक्लिक कोड ठीक कर दिया गया है.. जानकारी के लिए शुक्रिया..
ReplyDeleteअच्छा विषय चुना तुमने पर लेख थोड़ा संक्षिप्त रहा । और जानने की उत्सुकता थी तुम्हारे गाँव के बारे में। चित्र हमेशा की तरह बेहतरीन हैं।
ReplyDeleteजी मनीष सर.. इस बार थोड़ा लिखनें का प्रयास किया था.. अब आगे चित्रों के साथ विस्तार से लिखनें का प्रयास करूंगा.. बहुत बहुत शुक्रिया..
Deleteबहुत सुंदर फोटो और गाँव के रंग ...
ReplyDeleteदिवाली की शुभकामनायें
आपको भी..
Deleteबहुत अच्छी पोस्ट.. गांव और बच्चों की तस्वीरें बहुत अच्छी लगी...
ReplyDeleteशुक्रिया..
DeleteI am also from Ranchi lalpur chowk
ReplyDeleteNice blog Check mine too
Know The Answer
Your's is also great.. Thankyou for the link..
Deleteधन्यवाद..
ReplyDeleteacha blog hai bhai.. pics b bahut achi hai :)
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद पवन जी..
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