पुरी से सतपाड़ा का रास्ता आदिवासी गावों से होकर जाता है; रास्ते भर एक ओर चावल के खेत हैं तो दूसरी ओर छोटे छोटे तालाब, नारीयल और काजू के पेड़.. लगभग एक घंटे में हम सतपाड़ा में थे; यहां 'चिलिका झील' का पूर्वी किनारा है जो पर्यटकों में काफी प्रसिद्ध है.. यहां से मोटरबोट किराए पर लेकर झील में स्थित आइलैंड्स की सैर को निकला जा सकता है..
ये झील दया नदी के मुहानें पर स्थित है, जहां ये बंगाल की खाड़ी में गिरती है.. चिलिका भारत की सबसे बड़ी और विश्व में दूसरी सबसे बड़ी खारे पानी की झील है.. इसमें कई आइलैंड्स हैं जिसमें सबसे बड़ा 'राजहंस आइलैंड' है जो झील और समुद्र के बीच करीब 60 km लम्बा अवरोध बनाता है..
झील के पूर्वी किनारे से हम एक मोटरबोट में बैठकर राजहंस के लिए निकल पड़े.. हमारे नाविक श्री अशोक कुमार नें हमें लगभग एक घंटे की बोटिंग और कुछ डोलफिन्स के दर्शन के बाद राजहंस आइलैंड पहुंचाया..
यहां पर्यटकों के सुस्तानें के लिए कुछ रेस्टोरंट्स भी हैं जो आपके बोट से उतरते ही आपको बुलानें लगते हैं और फिर आपसे यहां के 'सी-फूड्स' को चखनें का आग्रह करनें लगते हैं.. सी-फूड्स खानें का ये एक अच्छा मौका हो सकता है पर स्वास्थ्य का ख्याल रखते हुए यहां ना ही खाया जाए तो बेहतर है.. खैर हम तो ठहरे शाकाहारी; सो, हमारे लिए यहां बस चाय ही उपलब्ध थी..
यहां चिलिका के तट पर 'लाल केकड़े' बहुतायत में पाए जाते हैं, जो आपके नजदीक जाते ही रेत के बनें अपनें अपनें बिलों में घुस जाते हैं..
राजहंस आइलैंड के एक ओर चिलिका का शानदार झील है तो दूसरी ओर समुद्र.. यहां का समुद्रतट बेहतरीन है; पर चूंकि यहां आप बोट से आए हैं और आपके पास अतिरिक्त कपड़े उपलब्ध नहीं होते, बस इसलिए आप अपनें आप को यहां नहानें से रोक लेते हैं..
यहां से वापसी में इस आइलैंड पर ही बनें कुछ मंदिर हैं जिन्हें देखा जा सकता है.. खैर, हमनें काफी समय यहां के खूबसूरत समुद्रतट को देखनें में बिता दिए थे, और अबतक मौसम भी करवट ले चुका था और हवाएं भी थोड़े जोरों से चलने लगी थी; हम जल्दी से वापस पहुंच जाना चाहते थे पर शायद चिलिका का मौसम ये नहीं चाहता था..
वापसी में तेज हवाओं के साथ जोरदार बारिश हुई, हमारी बोट जोरों से हिचकोलें खानें लगी थी; लहरें जोरों से हमारे बोट से टकरा रही थी.. हम झील के बीचों-बीच थे और हमारे मोटरबोट का इंजन बंद हो गया था.. हमारी हालत खराब ही होनें वाली थी पर तभी हमारे नाविक नें हमारे बोट से छलांग लगा दी थी और झील के बीचों बीच हमारे बोट के सामने खड़ा था, हम आश्चर्यचकित थे; हमें बिलकुल भी झील की गहराई का अंदाजा नहीं था.. ये झील ज्यादा गहरा नहीं हैं, इसकी औसत गहराई करीब चार-पांच फीट ही है, और जहां हम थे वहां तो मुस्किल से ये दो फीट गहरा रहा होगा.. बहरहाल; झील में एक बांस गाड़ दिया गया, और हमारी बोट को उससे एक रस्सी के सहारे बांध दिया गया; धीरे-धीरे लहरें शांत हुईं और फिर हम आगे बढ़ सके.. किनारे आते-आते काफी देर हो चुकी थी..
यहां से वापसी में हमें जगन्नाथ मंदिर भी जाना था; कलिंग शैली से बना ये मंदिर बहुत सुन्दर है.. मंदिर को जाती सड़क चौड़ी है और यहां काफी भीड़-भाड़ भी रहती है, ये पुरी का मुख्य केंद्र है.. मंदिर के अंदर आपको कैमरा, मोबाईल, इत्यादी ले जानें की इजाजत नहीं है.. मंदिर परिसर में ही आगे 'आनंद बाजार' है, जो दुनिया की सबसे बड़ी 'फूड मार्केट' है; खाने के शौकीन लोगों के लिए आनंद बाजार एकदम सही जगह है..
आज देर शाम हमें ट्रेन पकड़नी थी, सो हम जल्दी यहां से वापस होटल पहुंच चुके थे, पुरी रेलवे स्टेशन हमारे होटल से करीब पंद्रह मिनट की दूरी पर था.. देर शाम करीब साढ़े आठ बजे हम फिर ट्रेन में बैठे थे वापस रांची जानें के लिए.. रातभर की यात्रा के बाद दिन में करीब बारह बजे हम रांची पहुंचे..