Tuesday, January 16, 2024

Last Thursday

There is a theory named Last Thursdayism.. 

According to this theory the world and pretty much everything was created last Thursday. And, it is impossible to disprove this theory even by greatest minds because the theory is not falsifiable.. 

Why? 

Because you may say you have a picture of yourself eating at a restaurant last year. This theory says, you, your restaurant and your memory eating at the restaurant, your picture caught while eating at the restaurant.. etc (the entire thing) created on last Thursday.. 

☺☺

Monday, December 25, 2023

व्यक्तिगत निर्णय

 "व्यक्तिगत निर्णय चाहे जितने बड़े-छोटे, महत्वपूर्ण या साधारण हों, यदि वे सामाजिक हस्तक्षेप से बचे रहें और शुद्ध रूप से अपने विवेक से लिये जाएं, तो समय के साथ वे निर्णय सही सिद्ध होते हैं.. निर्णय लेने में कोई भी भय, स्वार्थ या चतुराई का प्रभाव हो तो इसका प्रारम्भ चाहे जितना सही प्रतीत हो रहा हो, यह कभी भी सही दिशा में सही लक्ष्य तक नहीं ले जाता.. आलोचना के भय से अपने विवेक को परे रखकर समाज के अनुसार लिए गए निर्णय इसी प्रकार के होते हैं.."

Tuesday, September 11, 2018

Thermodynamics और जिंदगी


“The total entropy of an isolated system can never decrease over time. Or in other words, the universe is always moving from order to disorder.”

मतलब,  विश्व की एंट्रोपी निरंतर, स्वाभाविक रूप से बढ़ती रहती है.. यह कभी कम नहीं होती.. यानी अगर विश्व की एंट्रोपी को दो अलग – अलग समय पर नापा जाए, तो दूसरी बार वो सदा ज़्यादा ही मिलेगी..

ऊष्मागतिकी के इस नियम को समझने के लिए हमें पहले एंट्रोपी के बारे में जानना होगा..

समय के साथ मैटर और ऊर्जा की गुणवत्ता कम होती जाती है..उपयोग करने योग्य ऊर्जा को अनिवार्य रूप से हम उत्पादन, विकास और मरम्मत के लिए खर्च करते हैं..
इस प्रकिया में वह ऊर्जा अब उपयोग के योग्य नहीं रहती.. यानी उपयोगी ऊर्जा अनुपयोगी बनकर खोती जा रही है.. एंट्रोपी इसी अनुपयोगी ऊर्जा के माप को कहते हैं..

अनुपयोगी ऊर्जा बढ़ने से एंट्रोपी भी बढ़ रही है..

एंट्रोपी का दिमागी चित्र बनाने की लिए हम उसे अनियमितता या बिना कायदे जैसा कुछ सोच सकते हैं.. जितनी ज्यादा अनियमितता, उतनी ज़्यादा एंट्रोपी..

अब आइये देखते हैं यह हमारी रोजमर्रा की जिंदगी को कैसे प्रभावित करता है...

जैसे मैंने अभी कॉफी बनाया, तो मैं चाहूंगा की मेरी कॉफी गर्म रहे.. मैं गर्म कॉफी पसंद करता हूँ और मैं चाहता हूँ की मेरी कॉफी सदा गर्म रहे ताकि जब कभी मैं कॉफी पीना चाहूँ मैं गर्म कॉफी पी सकूँ.. लेकिन यह उसी वक्त से ठंडा होना शुरू हो जाता है जिस वक्त यह चूल्हे से उतरता है.. आप इसे थर्मस में भी रखें तो भी यह धीमा-धीमा तो ठंडा होगा ही..

हम इसे जीवन में हर जगह देख सकते हैं.. जैसे अगर हम अपना बगीचा संवारना छोड़ दें, यह जल्दी ही जंगल में तब्दील हो जाएगा.. या जैसे आप एक कार खरीदते हैं, तो यह उसी दिन से पुराना होना शुरू हो जाता है और एक दिन यह कबाड़ में भी बदल जाता है..

हम मेहनत कर सकते हैं चीजों को अस्थायी रूप से ठीक रखने के लिए, या इसे ऐसा कहें की एंट्रोपी को कम करने के लिए.. पर देर सबेर सारी चीजें अ-व्यवस्थित हो ही जाती है, या इसे ऐसा भी कहा जा सकता है कि उन्हें  एंट्रोपी हो जाती है...

चाहे मैं कितना ही मेहनत क्यूँ न करूँ, मेरी चीजें एक दिन टूट ही जाएंगी, शरीर भी काम करना बंद कर देगा, सूर्य को भी एक दिन बुझ जाना है, और यह ब्रह्माण्ड भी एक दिन ख़त्म हो जाएगा.. सब को यह ‘एंट्रोपी’ निगल जाएगी..

हम व्यवस्था चाहते हैं, चीजें अच्छी रहें, नयी रहें। लोग हमेशा स्वस्थ रहें..

पर, यहाँ बीच में आ जाता है Thermodynamics, और मेरा पसंदीदा शब्द ‘एंट्रोपी’..