मनुष्य दुख के बीज बोता रहता है और रोता है कि वह दुखी क्यों है..? मनुष्य की मूर्छा गहरी है, मूर्छा के ही कारण से हमें यह दिखाई नहीं पड़ता कि जो बीज हम बो रहे हैं वे दुख के हैं अथवा आनन्द के.. हम बीज तो दुख के बोते हैं पर फसल आनन्द की काटना चाहते हैं, जो कि असंभव ही है.. अगर हम आनन्द की फसल काटना चाहते हैं तो निश्चित ही हमें आनन्द के बीज ही बोने पड़ेंगे...
'ध्यान' आनन्द का बीज है... कुछ समय से मैं ये बीज बो रहा हूँ... और अब फसल भी आने लगी है...
'ध्यान' आनन्द का बीज है... कुछ समय से मैं ये बीज बो रहा हूँ... और अब फसल भी आने लगी है...
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