Sunday, August 23, 2015
अंतर्दृष्टि
किसी भी चीज का बिगड़ना बड़ी आसान बात है, वहीं उसका बनना या फिर उसका पुनर्निमाण एक लम्बी और जटिल प्रक्रिया है। डिग्री के इस घनचक्कर में कई चीजें जरूर बन जाती हैं, पर कुछ जरूरी चीजें बिगड़ भी जाती हैं। अधिक से अधिक जानकारियां जुटाने के चक्कर में हम धीरे-धीरे एक मशीन बन जाते हैं। अंतर्मन से हमारा रिश्ता कमजोर हो जाता है। हमारा आइ० क्यू० (इंटेलिजेंस क्वोसेंट) जरूर बढ़ जाता है पर ई० क्यू० (इमोशनल क्वोसेंट) धीरे धीरे कम होता जाता है। स्वयं से हमारा कोई भी संबंध स्थापित नहीं हो पाता है और उर्जा जो हमारे भीतर ही छुपी होती है वह अनछुई ही रह जाती है।
इस उर्जा से दूरी की कीमत हमें कई रूपों मे चुकानी पड़ती है: हम भीतर से कमजोर हो जाते हैं, थोड़ी सी विपरीत परिस्थितियां भी हमें तोड़ देती हैं। जबतक जीवन में सबकुछ हमारी अपेक्षाओं के अनुसार होता है हम ठीक-ठाक होते हैं, पर विपरीत परिस्थितियां आते ही हम खुद को उससे लड़ने में असमर्थ पाते हैं। सफलता मिलने पर तो हम खुश होते ही हैं पर असफलता को पचा नहीं पाते। बात कभी-कभी इतनी बिगड़ जाती है कि हम आत्महत्या तक करने की सोचने लगते हैं। हमारे अन्दर की कमजोरी हमारा आत्मविश्वास भी छीन लेती है और हमारे अंदर कई तरह के डर बैठ जाते हैं। यूं तो हम चिल्लाते रहते हैं पर कभी समूह को संबोधित करना हो तो हमारी बोलती बंद हो जाती है। हमारे अन्दर इस तरह की सारी कमियां इसलिए विकसित हो पाती हैं क्यूंकि हमारा स्वयं से रिश्ता टूटा होता है, या यूं कहें कि हम स्वयं को जानते ही नहीं।
स्वयं से इस टूटे रिश्ते को जोड़ने के कई तरीके हैं, पर शायद इसका सबसे कारगर तरीका 'ध्यान' है। ध्यान की एक छोटी सी विधि भी हमें अविश्वसनीय रूप से उर्जा से भर देती है, और हमें भीतर की ओर मोड़ देती है। उर्जा के बढ़ने से हमारा होश भी बढ़ता है और हम ज्यादा सघन रूप से किसी भी पल को जी पाते हैं। हमारा चित्त पहले की अपेक्षा ज्यादा एकाग्र हो पाता है। और इसका सबसे बड़ा फायदा है कि हम अन्दर से मजबूत हो जाते हैं। हर तरह की परिस्थितियों का सामना करने की क्षमता हमारे अन्दर विकसित होती जाती है।
वैसे कम से कम इस देश में ध्यान से लोगों का पुराना नाता रहा है। पर आजकल के तकनीकी युग में, चारों और विभिन्न प्रकार के गैजेट्स से घिरे आज के युवा धीरे-धीरे ध्यान और योग जैसी चीजों से दूर होते जा रहे हैं, और इसका ख़ामियाजा हमें रोज-रोज बढ़ते आत्महत्याओं और हिंसा के रूप में देखने को मिलता है। हताश और कुंठित युवा जब कुछ बना नहीं पाता तो वह चीजों को बिगाड़ने में लग जाता है। तोड़-फोड़ जैसी घटनाएं इसी का एक उदाहरण है।
ध्यान आज के युवा की पहली जरूरत है, पर हमारी नजर इस ओर नहीं जाती। हमारे देश की संस्कृति में गौतम बुद्ध जैसे ध्यानी और पतंजलि जैसे योगिओं का प्रभाव रहा है, पर धीरे-धीरे उनका प्रभाव कम होता जा रहा है और हम पश्चिम की ओर उन्मुख हो रहे हैं। वहीं पश्चिम धीरे-धीरे हमारे ध्यान और योग से प्रभावित हो रहा है। हमारी आज की सबसे बड़ी जरूरत यही है कि हम अपनी खो रही समृद्धि को फिर से प्राप्त करें। भारत फिर से दुनियां का गुरू बन सकता है बशर्ते हम हम अपनी सम्पदा को पहचानें और इसमें हमारे युवाओं की सबसे बड़ी भूमिका है।
Sunday, April 5, 2015
A Beautiful Story
A story tells that two friends were walking through the desert. During some point of the journey they had an argument, and one friend slapped the other one in the face. The one who got slapped was hurt, but without saying anything, wrote in the sand: TODAY MY BEST FRIEND SLAPPED ME IN THE FACE. They kept on walking until they found an oasis, where they decided to take a bath.
The one who had been slapped got stuck in the mire and started drowning, but the friend saved him. After he recovered from the near drowning, he wrote on a stone: TODAY MY BEST FRIEND SAVED MY LIFE . The friend who had slapped and saved his best friend asked him, "After I hurt you, you wrote in the sand and now, you write on a stone, why?"
The other friend replied "When someone hurts us we should write it down in sand where wind of forgiveness can erase it away. But, when someone does something good for us, we must engrave it in stone where no wind can ever erase it.
"LEARN TO WRITE YOUR HURTS IN THE SAND AND TO CARVE YOUR BENEFITS IN STONE."
They say it takes a minute to find a special person, an hour to appreciate them, a day to love them, but then an entire life to forget them.
Do not value the THINGS you have in your life.
But value WHO you have in your life!
Saturday, March 21, 2015
योगदा सत्संग सखा आश्रम
जब भी हम दिल से कोई इच्छा करते हैं, तो वह देर-सबेर जरूर ही पूरी होती है.. जब मैं यहां पिछली बार आया था तो यहां की हरियाली और खूबसूरती ने मेरा मन मोह लिया था, और कैमरा साथ न लाने की गलती से बहुत पछतावा भी हुआ था.. पर जब दुबारा यहां आने का मौका हाथ लगा तो मैं पूरी तरह तैयार था..
'योगदा सत्संग सखा आश्रम', रांची के दिल मे बसता है.. शहर के बीचो-बीच ऐसी मनोरम और प्राकृतिक जगह बहुत कम देखने को मिलती है..
यहां का स्मृति भवन खास है.. सफेद संगमरमर से बना यह मंदिर एक छोटे ताजमहल जैसा दिखता है.. किसी भी कोने से यह आपका ध्यान खींच ही लेता है..
ध्यान मंदिर यहां की सबसे शांत जगह है, यहां भीतर ध्यान और प्रवचन होते हैं..
परमहंस योगानंद जी का कमरा, और उनकी इस्तेमाल की हुई कुछ चीजें भी यहां संजो कर रखी गईं हैं.. यह लीची का वृक्ष भी खास है, क्यूंकि इसी पेड़ के नीचे वे अपने शिष्यों को ज्ञान दिया करते थे..
प्रकृति, ध्यान, शांति और आनंद के ऐसे बेजोड़ संगम में आ कर हमारा पूरा समूह भी बहुत प्रभावित था...
Tuesday, February 17, 2015
प्यार न सीखा, नफरत करना सीख लिया
हमारे समय का विरोधाभास यह है कि हमने इमारतें तो बहुत ऊंची बना ली हैं, पर हमारी मानसिकता क्षुद्र हो गई है। लंबे-चौड़े राजमार्गो ने शहरों को जोड़ दिया है पर दृष्टिकोण संकरा हो गया है। हम खर्च अधिक करते हैं, पर हमारे पास कुछ खास नहीं होता। हम खरीदते ज्यादा हैं, पर उससे संतुष्टि कम पाते हैं। हमारे घर बड़े हैं, पर परिवार छोटे हो गए हैं। हमने बहुत सुविधाएं जुटा ली हैं, पर समय कम पड़ने लगा है। हमारे विश्वविद्यालय ढेरों विषयों की डिग्रियां बांटते हैं, पर समझ कोई स्कूल नहीं सिखाता। तर्क-वितर्क ज्यादा होने लगा है, पर निर्णय कम सुनाई देते हैं। आसपास विशेषज्ञों की भरमार है, पर समस्याएं अपार हैं। दवाइयों से शेल्फ भरा हुआ है, पर तंदुरुस्ती की डिबिया खाली है।
हम पीते बहुत हैं, धुंआ उड़ाते रहते हैं, पैसा पानी में बहाते हैं, हंसने में शर्माते हैं, गाड़ी तेज चलाते हैं, जल्दी नाराज हो जाते हैं, देर तक जागते हैं, थके-मांदे उठते हैं, पढ़ते कम हैं, टीवी ज्यादा देखते हैं, प्रार्थना तो न के बराबर करते हैं! हमने संपत्ति को कई गुना बढ़ा लिया, पर अपनी कीमत घटा दी। हम हमेशा बोलते रहे, प्यार करना भूलते गए, नफरत की जुबां सीख ली।
हमने जीवन-यापन करना सीखा, जिंदगी जीना नहीं। अपने जीवन में हम साल-दर-साल जोड़ते गए, पर इस दौरान जिंदगी कहीं खो गई। हम चांद पर टहलकदमी करके वापस आ गए लेकिन सामने वाले घर में आए नए पड़ोसी से मिलने की फुर्सत हमें नहीं मिली। हम सौरमंडल के पार जाने की सोच रहे हैं, पर आत्ममंडल का हमें कुछ पता ही नहीं। हम बड़ी बातें करते हैं, बेहतर बातें नहीं।
हम वायु को स्वच्छ करना चाहते हैं, पर आत्मा को मलिन कर रहे हैं। हमने परमाणु को जीत लिया, पूर्वग्रह से हार गए। हमने लिखा बहुत, सीखा कम। योजनाएं बनाईं बड़ी-बड़ी, काम कुछ किया नहीं। आपाधापी में लगे रहे, सब्र करना भूल गए। कंप्यूटर बनाए ऐसे जो काम करें हमारे लिए, लेकिन उन्होंने हमसे हमारे दोस्त छीन लिए।
हम खाते हैं फास्ट फूड, लेकिन पचाते सुस्ती से हैं। काया बड़ी है, पर चरित्र छोटे हो गए हैं। मुनाफा आसमान छू रहा है, पर रिश्ते-नाते सिकुड़ते जा रहे हैं। परिवार में आय और तलाक दोगुने होने लगे हैं
क्या जमाना आ गया है। आप इसे क्लिक से पढ़ सकते हैं, दूसरी क्लिक से किसी और को पढ़ा सकते हैं, तीसरी क्लिक से डिलीट भी कर सकते हैं!
मेरी बात मानें- उनके साथ वक्त गुजारें जिन्हें आप प्यार करते हैं, क्योंकि कोई भी किसी के साथ हमेशा नहीं रहता।
याद रखें, उस बच्चे से भी बहुत मिठास से बोलें जो अभी आपकी बात नहीं समझता- एक न एक दिन तो उसे बड़े होकर आपसे बात करनी ही है।
दूसरों को प्रेम से गले लगाएं, आखिर इसमें भी कोई पैसा लगता है क्या?
‘मैं तुमसे प्यार करता हूं’- यह सिर्फ कहें नहीं, साबित भी करें।
प्यार के दो मीठे बोल पुरानी कड़वाहट और रिसते जख्मों पर भी मरहम का काम करते हैं।
हाथ थामें रखें- उस वक्त को जी लें। याद रखें, गया वक्त लौटकर नहीं आता।
स्वयं को समय दें- प्रेम को समय दें।
जिंदगी को सांसों से नहीं नापिए बल्कि उन लम्हों को कैद करिए जो हमारी सांसों को चुरा ले जाते हैं।
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