Tuesday, February 17, 2015
प्यार न सीखा, नफरत करना सीख लिया
हमारे समय का विरोधाभास यह है कि हमने इमारतें तो बहुत ऊंची बना ली हैं, पर हमारी मानसिकता क्षुद्र हो गई है। लंबे-चौड़े राजमार्गो ने शहरों को जोड़ दिया है पर दृष्टिकोण संकरा हो गया है। हम खर्च अधिक करते हैं, पर हमारे पास कुछ खास नहीं होता। हम खरीदते ज्यादा हैं, पर उससे संतुष्टि कम पाते हैं। हमारे घर बड़े हैं, पर परिवार छोटे हो गए हैं। हमने बहुत सुविधाएं जुटा ली हैं, पर समय कम पड़ने लगा है। हमारे विश्वविद्यालय ढेरों विषयों की डिग्रियां बांटते हैं, पर समझ कोई स्कूल नहीं सिखाता। तर्क-वितर्क ज्यादा होने लगा है, पर निर्णय कम सुनाई देते हैं। आसपास विशेषज्ञों की भरमार है, पर समस्याएं अपार हैं। दवाइयों से शेल्फ भरा हुआ है, पर तंदुरुस्ती की डिबिया खाली है।
हम पीते बहुत हैं, धुंआ उड़ाते रहते हैं, पैसा पानी में बहाते हैं, हंसने में शर्माते हैं, गाड़ी तेज चलाते हैं, जल्दी नाराज हो जाते हैं, देर तक जागते हैं, थके-मांदे उठते हैं, पढ़ते कम हैं, टीवी ज्यादा देखते हैं, प्रार्थना तो न के बराबर करते हैं! हमने संपत्ति को कई गुना बढ़ा लिया, पर अपनी कीमत घटा दी। हम हमेशा बोलते रहे, प्यार करना भूलते गए, नफरत की जुबां सीख ली।
हमने जीवन-यापन करना सीखा, जिंदगी जीना नहीं। अपने जीवन में हम साल-दर-साल जोड़ते गए, पर इस दौरान जिंदगी कहीं खो गई। हम चांद पर टहलकदमी करके वापस आ गए लेकिन सामने वाले घर में आए नए पड़ोसी से मिलने की फुर्सत हमें नहीं मिली। हम सौरमंडल के पार जाने की सोच रहे हैं, पर आत्ममंडल का हमें कुछ पता ही नहीं। हम बड़ी बातें करते हैं, बेहतर बातें नहीं।
हम वायु को स्वच्छ करना चाहते हैं, पर आत्मा को मलिन कर रहे हैं। हमने परमाणु को जीत लिया, पूर्वग्रह से हार गए। हमने लिखा बहुत, सीखा कम। योजनाएं बनाईं बड़ी-बड़ी, काम कुछ किया नहीं। आपाधापी में लगे रहे, सब्र करना भूल गए। कंप्यूटर बनाए ऐसे जो काम करें हमारे लिए, लेकिन उन्होंने हमसे हमारे दोस्त छीन लिए।
हम खाते हैं फास्ट फूड, लेकिन पचाते सुस्ती से हैं। काया बड़ी है, पर चरित्र छोटे हो गए हैं। मुनाफा आसमान छू रहा है, पर रिश्ते-नाते सिकुड़ते जा रहे हैं। परिवार में आय और तलाक दोगुने होने लगे हैं
क्या जमाना आ गया है। आप इसे क्लिक से पढ़ सकते हैं, दूसरी क्लिक से किसी और को पढ़ा सकते हैं, तीसरी क्लिक से डिलीट भी कर सकते हैं!
मेरी बात मानें- उनके साथ वक्त गुजारें जिन्हें आप प्यार करते हैं, क्योंकि कोई भी किसी के साथ हमेशा नहीं रहता।
याद रखें, उस बच्चे से भी बहुत मिठास से बोलें जो अभी आपकी बात नहीं समझता- एक न एक दिन तो उसे बड़े होकर आपसे बात करनी ही है।
दूसरों को प्रेम से गले लगाएं, आखिर इसमें भी कोई पैसा लगता है क्या?
‘मैं तुमसे प्यार करता हूं’- यह सिर्फ कहें नहीं, साबित भी करें।
प्यार के दो मीठे बोल पुरानी कड़वाहट और रिसते जख्मों पर भी मरहम का काम करते हैं।
हाथ थामें रखें- उस वक्त को जी लें। याद रखें, गया वक्त लौटकर नहीं आता।
स्वयं को समय दें- प्रेम को समय दें।
जिंदगी को सांसों से नहीं नापिए बल्कि उन लम्हों को कैद करिए जो हमारी सांसों को चुरा ले जाते हैं।
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कितनी अच्छी बातें हैं, किसी से भी शिकायत नहीं हो सकती! तो फ़िर इन्हें बार बार क्यों भूल जाते हैं? :)
ReplyDelete:) मनुष्य की नींद गहरी है.. हमें सब पता होता है पर हम इतने खोए हुए होते है कि सब पता होते हुए भी वे मन के किसी कोने मे दबी रह जाती हैं..
Deleteवास्तविकता यही है की मनुष्य अच्छाई सीखने में अधिक समय लगता है जबकि बुराई ग्रहण करने में कम
ReplyDeleteयही तो विडम्बना है.. :)
Deleteप्रेम हमारी प्रकृति है, हमारा स्वभाव है. नफरत ऊपर से चढ़ा हुआ आवरण, जिसके पीछे प्रेम कहीं खो गया है. सिर्फ प्रेम अकेला दुनिया की सारी समस्यायों का समाधान कर सकता है. सार्थक लेखन. :)
ReplyDeleteधन्यवाद.. :)
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